कलाकृति
का वर्णन
कलाकृति का शीर्षक- ''तालागांव -श्री
रूद्रमहादेव दर्शन''
कला का माध्यम- रजवार
भित्ति-चित्र
( रजवार
भित्ति-चित्र बनाने हेतु प्लीबोर्ड पर चाक से डिज़ाइन बनाते हैं। फिर उस डिज़ाइन
पर नारियल बूच की पतली रस्सी को १/२ '' खीलों
(कीलों) की सहायता से ठोंक कर चिपकते हैं ,फिर उस रस्सी पर मिटटी की एक लेयर लगाते
हैं। मिटटी के सूख जाने पर ,यदि मिटटी फट जाती
है तो फिर मिटटी लगाने की प्रक्रिया को पुनः तब तक दुहराते हैं ,जब तक कि ,मिटटी की परत स्पष्ट न हो
,फिर उस पर चाक़ू से आकृति उकेरते हैं ,तत्पश्चात
उन्हें रेत-माल पेपर से घिसकर चिकना कर देते हैं ,फिर उसे वभिन्न रंगों से रंगते हैं।)
कलाकृति का संक्षिप्त वर्णन - मेरी यह कलाकृति तालागांव एवं श्री
रूद्रमहादेव के दर्शन पर आधारित है। मेरी इस कलाकृति के मध्य में
भगवान श्री शंकर जी के स्वरूप ''श्री रूद्रमहादेव स्थापित
हैं ,जिनके एक तरफ देवरानी मंदिर के भग्नावेश तथा एक देवी की प्रतिमा बानी हुयी है
,जबकि दूसरी ओर जेठानी मंदिर एवं अतिसुन्दर '' चंद्रशिला '' की प्रतिमा
तथा एक भारवाहित स्तम्भ के भग्नावेश हैं। कलाकृति के नीचे मनियारी नदी का चित्रण
है तथा कुछ भक्तगण अपने परिवार के साथ रूद्रमहादेव के दर्शन हेतु जा
रहे हैं ,एक महिला पूजा की थाली लिए महादेव की मूर्ती की तरफ गमन कर रही है, वहीँ एक
भक्त हाथ में नारियल व फूल माला लिए मंदिर की ओर प्रस्थान कर रहे हैं। वहीँ कलाकृती
के नीचे दायीं ओर एक ग्रामीण नदी किनारे पेड़ की छाँव में बांसुरी बजा रहा है।
वहीँ कलाकृती के दोनों तरफ दो विशालकाय वृक्ष हैं जिसमे पक्षी ,बन्दर
और मयूर बैठे हुए हैं।
हमारे रेलवे स्टेशन रायपुर
एवं बिलासपुर के मध्य दगोरी रेलवे स्टेशन से लगभग पंद्रह किलोमीटर की दूरी
पर तालागांव स्तिथ है। जहाँ कैब या (स्वयं के वाहन ) से जाना ज्यादा
उचित है। तालागांव, मनियारी नदी के किनारे बसा हुआ है।तालागांव की
स्तिथि मनियारी और शिवनाथ नदियों के संगम पर स्तिथ होने से तालागांव का
नाम मेकाला के पाण्डुवंशियों के दस्तावेजों में ''संगमग्राम'' के नाम से उल्लेखित
है। तालागांव मुख्यतः यहाँ स्तिथ ''देवरानी-जेठानी मंदिर'' के लिए
प्रसिद्द है। इतिहासकार तालागांव को सातवीं-आठवीं सदी पुराना मानते
हैं।
तालागांव के पास पुरातात्विक एवं धार्मिक
महत्त्व के स्मारक जैसे सारागांव के धूम नाथ मंदिर एवं मल्हार स्तिथ हैं। तालागांव एक
अमूल्य एवं उत्कृष्ट पुरातात्विक उत्खनित स्थल है जिससे नक्काशी एवं मूर्तिकला
का एक उत्कृष्ट उदाहरण प्रकट हुआ। तालगांव का यह अत्युत्तम उत्खनन
, छठवीं से दसवीं सदी में तालागांव के वैभव को प्रकट करता है।
हालांकि तालागांव में विभिन्न राजवंशों ने राज किया ,परन्तु प्राप्त
उत्खनन से ज्ञात होता है कि ,वो सभी भगवान शिव को मानने वाले थे। आज भी लोग तालागांव के
मंदिर परिसर में रूद्रमहाशिव की नियमित रूप से पूजा-अर्चना करने हैं ,महामृत्युंजय
मंत्र का जाप करते है। तालागांव में निषाद समाज के बने हुए विभिन्न मंदिर
भी हैं जैसे- राम-जानकी मंदिर ,स्वामी पूर्णानंद महाराज मदिर और गौशाला।
देवरानी-जेठानी मंदिर
देवरानी-जेठानी मंदिर एक
दूसरे से १५ किलोमीटर की दूरी पर स्तिथ हैं।
वर्तमान में, जेठानी मंदिर जीर्ण शीर्ण अवस्था में
हैं। यह शिव मंदिर के लिए प्रसिद्द है। जिसमे उत्कृष्ट नक्काशी एवं स्तम्भों
की झलक मिलती है। जेठानी मदिर का आधार उसके प्रवेश द्वार पर स्तिथ अतिसुन्दर
'' चंद्रशिला '' है। मंदिर गर्भ गृह ,अर्ध मंडप और अंतराल से मिलकर बना है। सीढ़ियों
के आलंकारिक स्तम्भों पर भगवान शिव के यक्षगण एवं भारवाहक गण कुरेदे
गए हैं। आतंरिक कक्ष के किनारों को संरक्षित करते हुए वृहद गज की मूर्ती
आध्यात्मिक परिवेश के प्रभुत्व को बढ़ाने में मदद करती है।
ताला अतीत में रमणीक संगतराशी से भरपूर था जो कालांतर में
एक रहस्य में दफ़न हो गया। मातृभमि से उत्खनित कई प्रसिद्द मूर्तियां ताला में
संरक्षित रखी गयी हैं।उनमे विश्व प्रसिद्द तराशित -''मयूरासन श्री चतुर्भुज
कार्तिकेय'', शानदार ढंग से तराशी हुयी ''आकाश में निर्भीकता से युद्ध करते हुए-श्री
गणेश '' की मूर्ती ,'' द्वि मुखी गजदंत भगवान श्री गणेश'',''अर्धनारीश्वर'',''उमा महेश
''नागपुरुष''और अन्य ''यक्ष '' शामिल हैं। अत्यंत दुर्लभ पाषणशिल्प ''शालभंजिका ''
और अन्य कृतियाँ मंदिर में बिखरी हुयी हैं।
दुर्लभ रूद्र शिवा की मूर्ती
देवरानी-जेठानी मंदिर भारतीय नक्काशी एवं कला के लिए प्रसिद्द है। सन
1987 -88 में देवरानी मंदिर में उत्खनन के दौरान एक नितान्त अद्वितीय भगवान शिव
की प्रतिमा प्राप्त हुई। ''रूद्र'' प्रतिरूप के भगवान शिव की यह प्रतिमा
भगवान शिव के व्यक्तित्व के विभिन्न स्वरूपों की झलक दिखलाती है। ''शैव '' सम्प्रदाय
के शिल्पियों द्वारा ,भगवान शिव इस यह अद्वितीय प्रतिमा में विभिन्न
प्राणियों को तराशा गया है। शिल्पी ने प्रत्येक कल्पनीय जंतुओं को उनके आकारिकी के
एक भाग से प्रदर्शित किया है जिनमे सरीसृप का प्रयोग बहुतायत से हुआ है। इस प्रतिमा
में जीवन के क्रमिक विकास का दर्शन भी होता है।
भगवान शिव की यह प्रतिमा
2.5 मीटर ऊंची तथा 1 मीटर चौड़ी है। भगवान शिव की पगड़ी दो साँपों को मिलकर बानी हुयी
है,जिनके फण भगवान के दोनों कन्धों पर स्तिथ हैं। कानों में मयूर सुशोभित हैं। नाक
एक अवरोही छिपकली की तरह है। आँखों की भौं मेंढक के खुले हुए मुंह या दहाड़ते हुए सिंह
की तरह दिखाई पड़ती है। ऊपरी ओंठ एवं मुंछ दो मछलियों को
मिलकर बनी हुयी है जबकि निचला ओंठ और ठुड्डी केंकड़े का रूप लिए हुए है।
कन्धों पर मगमच्छ भी चित्रित है तथा दोनों हाथ मगरमच्छ के मुँह से बाहर निकलते हुए
प्रतीत हो रहे हैं।शरीर के विभिन्न हिस्सों में सप्त मानव शीर्ष
बने हुए हैं इनमें से मानव शीर्ष का एक जोड़ा छाती के दोनों ओर बना हुआ है जबकि एक बड़ा
चेहरा पेट बनाया हुआ है,इन तीनों चेहरों में मूंछें बानी हुयी हैं
दोनों जाँघों पर चेहरों के दो जोड़े खुदे हुए हैं जाँघों में सामने की तरफ दो हँसते
हुए चेहरे तराशे गए हैं जबकि दो जाँघों के बाजुओं में बने हुए हैं। दोनों घुटनों
में सिंह का शीर्ष बना हुआ है। जबकि कमर ,सांप की तरह अंकित है जबकि हाथों
की अँगुलियों के नाख़ून सांप के मुंह की भांति तराशे गए हैं। ताला में अभी तक
कोई अभिलेख प्राप्त नहीं हुए हैं ,हालांकि सीढ़ी के प्रथम पद में हेतुकर्ण और ब्रह्मकरण
नाम के दो तीर्थयात्रियों का नाम खुद हुआ है ठीक इसी तरह के नाम द्वारपाल के चित्रण
के पीछे भी है।
जहां तक पुरातात्विक महत्त्व एवं मूर्तिकला नक्काशी पर्यटन की बात है
तालागाँव,छत्तीसगढ़ का गौरव है। तालागांव की मूर्तिकला अद्वितीय है।
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