Tuesday, 1 December 2020

Rajwar Bhitti chitra Dandari dance रजवार भित्ति चित्र डंडारी नाच


 Title- Bar - Bihav   Medium- Soil paste on  board.                            Art work- Rajwar Bhitti Chitra                      Size-  15" × 48" = 720  square inches          Year  -  2019                   Artist- Pratima Daharwal   who win State Award (Governor of Chhattisgarh State award), She is second Rajwar Bhitti chitra artisan since 1956  whose art presentation reached to final level/ round ofNational Award (President of India Award) Is it original or inspired- Original after reading story of Bar Bihav , I made a mood to make bhitti chitra on that  which complete completely through my imagination.                         Description of Rajwar- This is Rajwar  Bhitti-Chitra  This is Typical Art form of Sarguja region of Chhattisagarh State of INDIA .It is Handcrafted 3-D wall painting , made up of ordinary soil.


Earlier it was crafted on wall directly but nowadays  it is made up portable form by crafting on plyboards .For that first design has been drawn through chalk on board. Then coconut fiber rope has been fixed over design through 1/2'' nails. Then wet soil paste has been plasted over ropes, and            leave it to dry for 1-2 days, then it has been checked that -is there dried soil paste cracked or smooth?  if it was   cracked then more layer of wet paste are layered over it   in 2-3  times of this layering n drying work.

 Then it has made smooth by scrubbing it throgh sand paper.Then 2-3 coat of required colour distemper has been  painted.Lastly it has been decorated with different shades of fa colours .      इस आकार की पेंटिंग को बनाने में  करीब 25 दिन लगते हैं मिट्टी कई   परतों के कारण यह  rock hard  हो जाता है                Description  of title -   Bar - Bihav  means  typical Chhattigarhi  marriage.                         Bar -Bihav   की शुरुआत मंडपाक्षादन से होती है, जिसमें ऐसे पेड़  ""  डूमर "" की लकड़ी और शाखाओं  से मंडप बनाया जाता है, जिस ""  डूमर ""  के बारे में कहा जाता है कि उसमें प्रेत का निवास होता है|  इसके पीछे  एक  बहुत  रोचक मान्यता यह है क्योंकि इसमें पहले से प्रेत रहता है अतः इससे मंडप बनाने पर रात में आकाश एवं वातावरण में विचरण करने वाले प्रेतात्मा यह सोचकर कि अरे उस जगह में तो पहले से ही प्रेत और चुड़ैल हैं अत: हम वहाँ जाकर क्या करेंगे! और शादी के मंडप और शादी स्थल को छोड़कर आगे बढ़ जाते हैं! , मंडपाक्षादन और चुड़माई(मांगरमाटी) के बाद दूल्हे को हल्दी लगती है| उसके बाद दूल्हे को बांस से बने बड़े पर्रे  पर बैठाकर उसके चेहरे को कपड़े से डांटकर  , घर की महिलाओं द्वारा उसे नहलाया जाता है और उनके नहाये पानी को बांस के पर्रे के नीचे रखे पात्र में इकट्ठा कर उस पानी और पर्रे को लड़की के घर ले जाया जाता है, जहाँ दुल्हन, दूल्हे के नहाये पानी से  स्नान करती है तथा पर्रे को दुल्हन के घर के दरवाजे में टंगा दिया जाता है, और जब दूल्हा बारात लेकर आता है, तब उस पर्रे को अपनी तलवार से जोर से दो बार छूता है और उसके बाद ही वधूपक्ष के मंडप में पहुंचता  है, जहाँ कन्यादान के पश्चात विवाह संपन्न होता है! 

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